हसदेव अरण्य जंगल: अरण्य जंगल भारत का फेफड़ा, जंगल की कटाई क्यों हो रही? यहां से पढ़े |

 हसदेव अरण्य जंगल | Hasdev Aranya Jungle


हसदेव अरण्य जंगल चर्चा में क्यों हैं।

दरसल हसदेव अरण्य जंगल को भारत का फेफड़ा कहा जाता है, लगभग 1876 वर्ग किलोमीटर का ये एरिया है। जिसकी कटाई हो रही, जिस जंगल से निकलकर हसदेव नदी जाती है, यह जंगल हाथियों के लिए विशेष मना जाता है। पूरा जंगल का इलाक़ा बहुत महत्वपूर्ण है, वन्यजीव और हाथियों के रहवास है। सबसे महत्वपूर्ण आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति इस जंगल पर निर्भर है। आदिवासियों जंगल को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ये इलाक़ा सदियों से रहने वाले आदिवासियों का घर है

 

संविधान की पांचवी अनुसूची का इलाक़ा

जहां पर आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार है ( पेसा क़ानून के तहत) कि ग्राम सभाओं की सहमति के बिना कोई भी परियोजना स्थापित नहीं हो सकती चाहे वो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया हो या वन भूमि के डायवर्ज़न की।"

 

जंगल की कटाई क्यों हो रही?

जंगल के नीचे कोयला है, इलाक़े में 22 कोल ब्लाक हैं। हम जानते हैं कि जहां खनिज हैं उसकी परिभाषा पूरी बदल जाती है। एक कॉरपोरेट के मुनाफे के लिए पूरे इलाक़े को तबाह करने की कोशिश की जा रही है। इसपर सियासत पारा चढ़ गया है. दरअसल उत्तर छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य में कोयला खदान खोलने के लिए पिछले एक सप्ताह से हजारों पेड़ों की कटाई हुई है

 

एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा ( सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट )

यहां केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार तीनों ही इसमें शामिल हैं, क्योंकि केंद्र सरकार फॉरेस्ट क्लीयरेंस देती है, एनवायरमेंट क्लीयरेंस देती है। इसमें माइनिंग लीज राजस्थान ऊर्जा विद्युत निगम को दी गई जो कि एक राजस्थान सरकार की संस्था है और माइनिंग होनी है छत्तीसगढ़ के अंदर, तो इसमें तीनों सरकार शामिल हैं।

माइनिंग की इजाजत देने से यहां कितने सारे कानूनों का उल्लंघन हो रहा है।

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