What is Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड से क्या बदलेगा, क्यों हो रहा विरोध

क्या है Uniform civil code?



क्या है Uniform civil code?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। इसका अर्थ है एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।

यूसीसी बिल में तलाक को लेकर स्थिति साफ की गई है। इसमें साफ किया गया है कि शादी की एक साल की अवधि तक पति या पत्नी तलाक का आवेदन नहीं दे सकते हैं। तलाक के लिए पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार दिया गया है। मुस्लिमों में तीन तलाक, हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं पर इस कानून के लागू होने के बाद पूरी तरह से रोक लग जाएगी।

 

यूनिफॉर्म सिविल कोड से क्या बदलेगा, 5 पॉइंट में समझें..

01. समान संपत्ति अधिकार : बेटे और बेटी दोनों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि वह किस कैटेगरी के हैं।


02. मौत के बाद संपत्ति: अगर किसी व्यक्ति की मौत जाती है तो यूनिफॉर्म सिविल कोड उस व्यक्ति की संपत्ति को पति/पत्नी और बच्चों में समान रूप से वितरण का अधिकार देता है। इसके अलावा उस व्यक्ति के माता-पिता को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। पिछले कानून में ये अधिकार केवल मृतक की मां को मिलता था।


03. समान कारण पर ही मिलेगा तलाक: पति-पत्नी को तलाक तभी मिलेगा, जब दोनों के आधार और कारण एक जैसे होंगे। केवल एक पक्ष के कारण देने पर तलाक नहीं मिल सकेगा।


04. लिव इन का रजिट्रेशन जरूरी: उत्तराखंड में रहने वाले कपल अगर लिव इन में रह रहे हैं तो उन्हें इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हालांकि ये सेल्फ डिक्लेशन जैसा होगा, लेकिन इस नियम से अनुसूचित जनजाति के लोगों को छूट होगी।


05. संतान की जिम्मेदारी : यदि लिव इन रिलेशनशिप से कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी जिम्मेदारी लिव इन में रहने वाले कपल की होगी। दोनों को उस बच्चे को अपना नाम भी देना होगा। इससे राज्य में हर बच्चे को पहचान मिलेगी।

 

क्यों हो रहा विरोध :-

Uniform civil code का विरोध करने वालों का मत है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून थोपने जैसा है। जबकि इसका उदेश्‍य साफतौर पर सभी को समान नजर से देखना और न्‍याय करना है। कई मुस्‍लिम धर्म गुरुओं और विशेषज्ञ Uniform civil code को लागू करने के पक्ष में नहीं है। उनका कहना है कि हर धर्म की अपनी मान्‍यताएं और आस्‍थाएं होती हैं। ऐसे में उन्‍हें नजरअंदाज नहीं किया जा सक‍ता।

 

क्या है हिन्दू पर्सनल लॉ :- 

भारत में हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लाया गया। देश में इसके विरोध के बाद इस बिल को चार हिस्सों में बांट दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे हिन्दू मैरिज एक्ट, हिन्दू सक्सेशन एक्ट, हिन्दू एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट और हिन्दू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट में बांट दिया था।

 

मुस्लिम पर्सनल लॉ :-

देश के मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पसर्नल लॉ है। पहले लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता था। इसके दुरुपयोग के चलते सरकार ने इसके खिलाफ कानून बनाकर जुलाई 2019 में इसे खत्म कर दिया है। तीन तलाक बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि सदियों से तीन तलाक की कुप्रथा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिला है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसे महिला-पुरुष समानता के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया था।मुस्लिम पर्सनल लॉ : देश के मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पसर्नल लॉ है। पहले लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता था। इसके दुरुपयोग के चलते सरकार ने इसके खिलाफ कानून बनाकर जुलाई 2019 में इसे खत्म कर दिया है। तीन तलाक बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि सदियों से तीन तलाक की कुप्रथा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिला है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसे महिला-पुरुष समानता के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया था।

 

भारत में एक बिल कैसे कानून बनता है?

सभा में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों द्वारा बहुमत से स्वीकार करने के पश्चात् संशोधन विधेयक का अंग बन जाते हैं। खंडों के पश्चात् अनुसूचियां यदि कोई हों तो, खण्ड 1, अधिनियमन सूत्र तथा विधेयक का पूरा नाम सभा द्वारा स्वीकृत करने के पश्चात् विधेयक का द्वितीय वाचन पूरा हो जाता है।

 

किसने लगाई याचिका?

अश्‍विनी उपाध्‍याय ने यूसीसी लागू कराए जाने को लेकर Supreme Court में याचिका दायर कर रखी है। उनका कहना है कि देश एक संविधान से चलता है। एक ऐसा विधान जो सभी धर्मों और संप्रदायों पर एक समान लागू हो। किसी भी पंथ निरपेक्ष देश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होते हैं। भारत में Uniform civil code अनिवार्य तौर पर होना चाहिए।

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